Pressure has been developing in the Himalayas along one of the world's highest land borders, with New Delhi and Beijing both blaming the other for violating the Line of Actual Control (LAC) that divides the two. The territorial status has for some time been questioned, emitting into various minor military clashes and diplomatic eyebrow-raising, since a wicked war between the nations in 1962. Recently, top military commanders met to cool-off the rising political mercury levels in Ladakh. Indeed, even today, exactly what happened on the ground, in the exceptionally mobilized locale, stays indistinct because of the role of media. Media on both sides has focused on propaganda and warmongering that has hindered the de-escalation of the matter. Chinese media's broadcast of People's Liberation Army (PLA) moves in the locale -with planes and trucks loaded with troops - in what state media portrayed as "exhibiting China's ability of ...
सावरकर पे मेरे पहले लेख में मैंने बहुत से विषयों को जान भूज के सम्मलित नहीं किया क्यूंकि मेरे इस लेख का उद्देश्य केवल आपको सावरकर के जीवन से परिचित कराना था ना कि राजनीती से प्रेरित होके उनके चरित्र की प्रशंसा अथवा बुराई करना। यहाँ ये बात ध्यान देने वाली हे की मेरा ये लेख राजनितिक लेख नहीं है बल्कि इसमें सावरकर के जीवन की उन घटनावों का उल्लेख हे जिनसे उनकी राजनीति का जन्म हुआ और उसने आकार लिया। हाँ यह बात निश्चित हे की उनपे मैं राजनीतिक लेख भी लिखूंगा जिसमे उनकी राजनीती का छिद्रान्वेषण भी होगा, परन्तु मैं, उनकी जीवनी का बचा हुआ शेष भाग अपने इस लेख से आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।
अण्डमान और निकोबार की सेलुलर जेल से कईं बार उनहोंने ब्रिटिश सरकार को दया याचिका भेजी परन्तु उन्हें हर बार निराशा ही हाथ लगी। कुछ साल बाद उनके भाई गणेश को तो छोड़ दिया गया परन्तु उन्हें कारावास से आज़ादी नहीं मिली। बाद में गाँधी, पटेल और तिलक के आग्रह पर उन्हें एक लिखित आश्वासन के आधार पर छोडा गया जिसमे उन्होंने हिंसा छोड़ने तथा ब्रिटिश कानून का सम्मान करने की शपथ ली। जेल से निकलने के बाद उनके निशाने पर अब केवल मुस्लिम रह गए और उन्होंने कांग्रेस के भारत छोड़ो आंदोलन का भी विरोध किया। उन्होंने भारतीय सैनिकों को द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश साम्राज्य की सहायता करने को कहा जिसके बदले में वो सरकार से भारतीय स्वतंत्रता की कामना करते थे। कांग्रेस के विरोध में वो मुस्लिम लीग से भी हाथ मिला बैठे। यह सब उन्होंने क्यों किया इसको हम क्रमवश उनके राजनीतिक जीवन के बारे में लेख से जानेगें परन्तु वो भविष्य की बात हे। तब तक आप से अनुरोध है कि ना सावरकर के चरित्र का आंकलन करे और ना मेरे।
सावरकर के जीवन में अभी और विचित्र मोड़ बाकी हैं। आज़ादी के बाद उनपे गांधीजी की हत्या का आरोप लगा जिसमे उन्हें सबूतों के आभाव में बरी कर दिया गया। इस कारण उन के घर पे हमले हुए। सरकार ने उन्हें भड़काऊ भाषण देने के आरोप में एक बार फिर से गिरफ्तार किया तो उन्होंने राजनीतिक जीवन से सन्यास ले लिया। लेकिन कुछ देर बाद वो फिर से राजनीतिक जीवन में लौटे परन्तु लगातार स्वास्थय में खराबी के कारण उनका निधन १९६६ को हो गया। उनकी मृत्यु पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के २ हज़ार स्वयंसेवकों ने उन्हें गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया।
उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में ३८ किताबे लिखी जिनमे सब से प्रमुख "इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस, १८५७" और पत्रिका "हिन्दुत्वा: हिन्दू कौन है" थी। उन के जीवन में और अधिक जानने के लिए आप savarkar.org पे जा सकते हैं।
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