Pressure has been developing in the Himalayas along one of the world's highest land borders, with New Delhi and Beijing both blaming the other for violating the Line of Actual Control (LAC) that divides the two. The territorial status has for some time been questioned, emitting into various minor military clashes and diplomatic eyebrow-raising, since a wicked war between the nations in 1962. Recently, top military commanders met to cool-off the rising political mercury levels in Ladakh. Indeed, even today, exactly what happened on the ground, in the exceptionally mobilized locale, stays indistinct because of the role of media. Media on both sides has focused on propaganda and warmongering that has hindered the de-escalation of the matter. Chinese media's broadcast of People's Liberation Army (PLA) moves in the locale -with planes and trucks loaded with troops - in what state media portrayed as "exhibiting China's ability of ...
मैं यदि ऐसा कहूं कि वीर सावरकर भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सब से बांटनेवाले चरित्र थे, तो ये अतिशोक्ति नहीं होगी। अब मेरे इस कथन को भी आप अपने पूर्वाग्रह की चक्की में पीसेंगे और मनचाहा अर्थ निकालेंगे। कोई सोचेगा कि सावरकर के प्रति लोगों में अलग अलग भावनाएं थी और कोई सोचेगा कि सावरकर की राजनीती बाँटनेवाली थी। परन्तु में आपके मन में बेस पूर्वाग्रह को सम्भोदित नहीं कर रहा, में केवल उनके बारे में जो प्रमाणित सत्य हे, उसे अपने इस लेख के द्वारा प्रस्तुत करना चाहता हूँ।
सावरकर का जन्म २८ मई १८८३ को भागपुर में हुआ था जो उस समय बॉम्बे प्रेसीडेंसी में था और आज के महाराष्ट्र में हे, एक मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार(जो की खुद को परशुराम के वंशज मानते हे) में हुआ था। उनके पिता दामोदर पंत और माता राधाबाई सावरकर थी। उनका वास्तिविक नाम विनायक दामोदर था। उनका नाम विनायक कैसे पड़ा उसके पीछे एक रोचक कहानी हे। वेबसाइट savarkar.org के मुताबिक़ जब वो नवजात शिशु थे तो उनके सभी परिवार वाले उनके दूध ना पीने को लेकर चिंतित थे। तब उनके तायाजी ने उनके शरीर पे बभूत लगा कर कहाकि अगर तुम विनायक(उनके दादाजी का नाम) हो तो अपनी माता का दूध ग्रहण कर। यह सुनते ही वह दूध पीने लग गए। इस तरह उनका नाम विनायक पढ़ गया। यह सिर्फ उनके साथ नहीं हुआ अपितु यह मराठी परम्परा का हिस्सा हे जिसमे शिशु का नाम उस के पुरखों पे रखा जाता हे। उनका विवाह यमुना (माई) से १८ वर्ष की आयु में हुआ।
सावरकर का जन्म २८ मई १८८३ को भागपुर में हुआ था जो उस समय बॉम्बे प्रेसीडेंसी में था और आज के महाराष्ट्र में हे, एक मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार(जो की खुद को परशुराम के वंशज मानते हे) में हुआ था। उनके पिता दामोदर पंत और माता राधाबाई सावरकर थी। उनका वास्तिविक नाम विनायक दामोदर था। उनका नाम विनायक कैसे पड़ा उसके पीछे एक रोचक कहानी हे। वेबसाइट savarkar.org के मुताबिक़ जब वो नवजात शिशु थे तो उनके सभी परिवार वाले उनके दूध ना पीने को लेकर चिंतित थे। तब उनके तायाजी ने उनके शरीर पे बभूत लगा कर कहाकि अगर तुम विनायक(उनके दादाजी का नाम) हो तो अपनी माता का दूध ग्रहण कर। यह सुनते ही वह दूध पीने लग गए। इस तरह उनका नाम विनायक पढ़ गया। यह सिर्फ उनके साथ नहीं हुआ अपितु यह मराठी परम्परा का हिस्सा हे जिसमे शिशु का नाम उस के पुरखों पे रखा जाता हे। उनका विवाह यमुना (माई) से १८ वर्ष की आयु में हुआ।
विनायक का बचपन हिन्दू मुस्लिम संगर्ष देखते हुए बीता और इसकी उनकी मानसिकता पे एक गहरी छाप पड़ी। इस कारण वो हमेशा हिन्दू एकता की बात करते रहे। उनके अनुसार मुस्लिम लोगों को भारतीय सभयता से कोई सरोकार नहीं हे और अगर वो भारतीय सभ्यता को नहीं अपनाते हे तो उन्हें किस तरह भारतीय नागरिक होने का गौरव प्राप्त होना चाहिए। सावरकर ने अपने राजनितिक गतिविधियों का आरम्भ अपने विद्ययार्थी जीवन से हे शुरू कर दिया था। बाद में वो इसको फर्गुसन कॉलेज तक ले गए। सावरकर खुद को नास्तिक बताते थे परन्तु उनका चिंतन हमेशा हिन्दू समाज के सरोकार के लिए था, जिससे वो राष्ट्रधर्म कहते थे। उन्होंने अपने भाई गणेश सावरकर के साथ मिलके अभिनव भारत नामक एक गुप्त संस्था( पहले मित्र मंडली) बनायी जिसकी सैकड़ों शाखाएं भारत में और एक शाखा लंदन में भी थी जहाँ वह वकालत के लिया गए थे । इस संस्था पे कुछ अंग्रेजी अधिकारीयों की हत्या का आरोप लगा जिस के कारण सावरकर भंधुवों को कारावास में डाल दिया गया तथा उनकी किताब "इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस १८५७ को भी प्रतिबंधित कर दिया गया। भारत निष्कासित होते समय वो भाग कर फ्रांस जा पहुंचे लेकिन उन्हें फ्रांसीसी सरकार ने ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया। इस बार उन्हें दो बार उम्र कैद हुई और उन्हें सेलुलर जेल, अंडमान और निकोबार भेज दिया गया।
परन्तु यह उनका अंत नहीं था, अपितु एक नया जन्म था।
परन्तु यह उनका अंत नहीं था, अपितु एक नया जन्म था।
great keep doing hard work bro.....par bhai english ma bnaao
ReplyDeleteOk bro. Kal Tak English me bhi aa jaega article.
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